भद्रावती के पुनरुत्थान की कहानी एक अदभूत स्वप्न से जुडी हुई है l अकोला के पास शिरपूर में 'श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ' का मंदिर है l श्री चतुर्भुजभाई इस मंदिर संस्था के व्यवस्थापक थे l विक्रम संवत १९६६ की माघ शुक्ल ५ सोमवार की रात को उन्हे जो स्वप्न आया , उसका वर्णन ' प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथ 'नामक 'किताब में अहमदाबाद के श्री मोहनलालजी झवेरी ने निन्मानुसार किया है l ''श्री चतुर्भूजभाई जंगल में घूम रहे है l इतने में उनके पीछे एक दस हाथ लंबा काला नाग चल पडा l चतुर्भुज जी जहाँ जाते है , वहा वह नाग भी उनके पीछे - पीछे जाता हैं l आखिर वे घुमते घुमते थक गये ,परन्तु नागराज ने उनका पिछा नही छोडा l तब उन्होने नाग से विनंती की ,' हे नागराज, मैने तुम्हारा कोई अपराध तो किया नही',फिर आप मेरे पीछे क्यो पडे है ? 'नाग ने मनुष्य की बोली में कहा ' मैं तुझे कुछ चमत्कार बताऊ, तू पाँच सौ रुपये खर्च कर l आप कहते तो ठीक है , लेकिन मैं तो कंगाल हालत में हुं,चाकरी कर के उदर पोषण करता हु, पाँच सौ रुपये कहा से लाऊ ? उसने जवाब दिया l नाग ने पुछा 'क्या तू इतने रुपये खर्च नहीं कर सकता ? मैं सच कहता हू, अभी मेरे पास कुछ नहीं है' उसने कहा l 'अच्छा तो तेरे पिछे देख' नागराज ने कहा l
चतुर्भुजभाई नाग की इस बात को सुनकर मन में बहुत घबराये की यदि मैने नजर पीछे घूमाकर देखा तो नाग मुझे डस लेंगा l फिर भी उन्होने डरते डरते पीछे देखा, तो आश्चर्य, जहाँ वे खडे थे, वहा जंगल नहीं था, एक बडा नगर था l उन्हे सामने पश्चिम मुखी मंदिर में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की पिले रंग की प्रतिमा दिखाई दि l तुरंत वह भगवान की स्तुती करने लगे l नागराज ने उस बीच में कहा - देख, यह भद्रावती नगरी और केसरिया पार्श्वनाथजी का बडा तीर्थ है जो अभी विच्छेद है l इस तीर्थ का उद्धार करने का तू प्रयन्त कर l नागराज के अदृश्य होते ही उनकी आंखे खुल गई l
उपरोक्त स्वप्न के बाद स्वाभाविक ही श्री चतुर्भुजभाई के मन मे˙ सपने की जांच पडताल की बात जोर करने लगी | वे चार दिन बाद यानि माघ सुदी ९ को अकोला से रवाना हुए और भांदक पहुँचे | वहाँ उन्हे बताया गया कि प्राचीन भद्रावती ही भांदक है | तब वे आसपास की झाडीयो में स्वप्नं प्रतिमा को ढूंढने लगे | प्रतिमा जैसे सपने मे देखी थी, वैसीही थी | फर्क इतना ही था कि यहां सपने मे प्रतिमा मंदिर मे स्थापित दिखी थी, तो यहा वो प्रत्यक्ष मे जमीन मे आधी गडी किंचित टिकी सी दिखाई दे रही थी और उस पर ' संरक्षित पुराणचिन्ह ' का बोर्ड लगा था |
चतुर्भुजभाई के पहले चांदा के चर्च के विद्यावासंगी पादरी को वह मुर्ति घुमते घुमते दिखाई दि थी और उन्ही कि सूचना पर ब्रिटिश सरकार के आर्कियालॉजिकल डिपार्टमेन्ट ने उसे अपने संरक्षण मे ले लिया था | जब चतुर्भुजभाई ने अपने स्वप्न की प्रतिमा को साक्षात देखा तो वे भावविभोर हो गये | प्रतिमा छः फूट उंची नाग के सप्तफणो से उक्त, अर्ध पद्मानस्थ में थी | उसका रंग केसरीया था |
स्वप्न में दिखी श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को खोज लेने के बाद श्री चतुर्भुजभाई चांदा आये और वहा के श्री संघ को अपने स्वप्न एवं खोंज का वृत्तांत निवेदिता किया | तब, चांदा में मुनीराज श्री सुमतिसागरजी महाराज विराजते थे | सारा वृत्तांत सुनकर चांदा का श्री संघ और मुनीराज सुमतिसागरजी भांदक आये | मुनिमहाराज ने प्रतिमाजी को देखकर तथा अन्य चिजो का निरीक्षण कर आदेश दिया कि यह प्रतिमा तेवीसवे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथजी की है और यह स्थान प्राचीन तीर्थक्षेत्र भद्रावती है, इसलिये जीर्णोद्धार का कार्य शुरू करवाकर इस तीर्थ एवं प्रतिमा को पुनर्स्थापित किया जाय | तद्नूसार तत्कालीन मध्यप्रदेश के आसपास के जिल्हो के प्रमुख जैन सज्जनो ने चांदा जैन सभा के अध्यक्ष स्वर्गीय श्री सिद्धकरणजी गोलेच्छा एवं वर्धा के प्रमुख स्वर्गीय श्री हीरालालजी फत्तेपुरिया की अनुवाई मे चंदा जमा करके तीर्थ निर्माण का महाकार्य संवत १९६९-७० मे शुरु किया जो लागातार ७-८ वर्षो तक चलता रहा |
संवत १९७३ की फाल्गुन शुद्ध तृतीया का शुभ दिन प्रतिष्ठा के लिये निश्चित किया गया | प्रतिष्ठा के आठ दिन पूर्व से मुलनायकजी को वेदीपर विराजमान करने के लिये घी की बोली शुरु कर दि गई थी | प्रतिष्ठा के चार दिन पूर्व इतनी विशाल मूर्ती कैसे उठाकर रखी जायेगी, यह जानने के लिये १५-२० व्यक्तीयो ने प्रतिमाजी को उठाकर देखने की कोशिष की | किंतु प्रतिमा एक सूत भी नहीं हिली |यह देखकर उपस्थित लोगो मे निराशा की लहर दौड गई |
प्रभू ने तपस्वियो की प्रार्थना मानो स्वीकार कर स्वप्न संकेत दिया की चार अविवाहित कुमारिका प्रभु पार्श्वनाथ की प्रतिमा को मूल स्थान से उठाकर नवनिर्मित वेदीपर विराजमान कर सकती है |ज्यो हि आचार्यश्री का आदेश हुआ, बन्धुओ, एक चमत्कार हुआ, चारो बालिकाओ ने प्रभू पार्श्वनाथ को ऐसे उठाकर वेदीपर विराजमान कर दिया की मानो वे प्रतिमा नहीं एक फोटो उठाकर रख रही हो | और असंख्य करतल ध्वनी, मंगलगान, मंत्रोच्चार, घंटनिनाद और जयघोष के बीच शुभ बेला मे पार्श्वनाथ पुनः प्रतिष्ठित किये गये |
संम्मोहित करता है
शिल्पकलायुक्त नूतन जिनालय
'' बज रहे है ढोल नगाडे गुंज रही शहनाई''
भारत के स्वप्नदेव भगवान श्री केसरिया पार्श्वनाथ भगवान के नवनिर्मित मंदिर में पुनः प्रतिष्ठा का एतिहासिक दिन माघ सुदि तीज बुधवार १३ फ़रवरी २०१३ को हुआ।भद्रावती के गरिमामय एवं गौरवशाली इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय तब जुड़ गया जब प्रभु की पुनः प्रतिष्ठा राजस्थानी एवं गुजराती शिल्पकला से युक्त भव्य मंदिर में की गयी।